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आप सभी को "विश्व हिंदी दिवस" की हार्दिक शुभेच्छा - दशा, दिशा, ऑर दुर्दशा,

  • Writer: Praja Pankh
    Praja Pankh
  • Sep 14, 2021
  • 4 min read

आज हम हिन्दी जो राज भाषा है। उसका पखवड़ा मनाते है। कया आप यह बता सकते है कभी चीन या यु एस ए ने चीनी या अंग्रेजी भाषाका पखवडा या कोई दिन मनाया हैं ? नही मनाया, हालांकी हम जानते है अंग्रेज़ी उनकी राजभाषा है, और वह उसका बहोत सन्मान भी करते है। अंग्रेजी को उन्होंने हर घर में, ओफिस में कारोबार में उद्योग मे हर जगह स्थान दिया है। जब कि हमारी भाषा राजभाषा हिन्दी है सब जानते है, भीर भी हमे उसका पखवडा मनाना पड़ रहा है। कयो ? ११ मास कुछ नही सिर्फ सप्टेम्बर आया की, हिन्दी राजभाषाके लिये खर्च शुरू करते हैं। ऑर कई सालो से नतीजा कुछ नही आ रहा हैं।आज भी दुर्दशा यह है कि, आज हमे हिन्दको याद दिलाना पड़ रहा है कि हमारी राजभाषा यानी हिन्दमाता जैसा जिसका स्थान है वह एक हिन्दी राजभाषा है। नेशनल और इन्टरनेशनल बैंको मे इस पखवाडे में काभी बेनर, बोर्ड लग जाते है। हम हिन्दी हैं, हिदी है हम, हिन्दुस्तान हमारा, हमारी मातृभाषा हिन्दी है, हिन्दीमें कारोबार किजीए, वगैरे वगैरे । नतीजा? आज तक कुछ नहीं आया। वैसे मेरे खयाल से हर हिन्दुस्तानी हिन्दीभाषा से अच्छी तरह परिचित तो है। फिरभी हमे पखवडा मनाना पड़ रहा है। जब तक हर बच्चोको स्कूल में प्रथम कक्षासे अंग्रेजीके स्थान पर हिन्दीको मुख्य विषय बनाकर सिखायेगें नही, तब तक हिन्दीकी दशा इसी तरहकी रहेगी। हिन्दी एक अनुवादित भाषा है। राजभाषा है। एक सर्व परी जनभाषा है। फिर भी अंग्रेजी पीछे पड़ी हुई है। वह अपना सर्वस्व करना चाहती है। अंग्रेजी रोज आगे बढ़ती है मगर हिन्दी ? । १९७५ से कहा जा रहा है कि हिन्दी राष्ट्रभाषा है। कहां कैसे है? न तो संसदमे, न तो विधानसभा मे न तो कारोबार में, यह दिन या पखवडा मना के हिन्दी को सब पर जबरजस्ती थोपना चाहते हैं? मेरे खयालसे थोपने की जरूरत नहीं है, उसे खुला छोडो क्योकी, वह जनतांत्रिक से बंधी है। उसका दिन या पखवडा मत मनावो हर दिन मनावो। यह सब मनाने से लगता है, हिन्दी दयनिय हो गई है, और क्या इस तरह हिन्दी बच पायेंगी? इससे बेहतर है! हिन्दी जहां जैसे बोली जाती है! उसे बोलने दो, सारे राज्य के लोग अपनी प्रांतकी भाषा में हिन्दी भाषा के कुछ शब्द डालकर भी बात करें मगर जरूर करें। वह संपर्क की भाषा है। इसी तरह आगे बढ़ेगी। आजकल तो, जहां हिन्दी बोली बोलते है जैसे मध्यप्रदेश, बिहार, यु.पी. वगेर जगह अंग्रेजी फेशन बन कर छायी जा रही है। सरकारने राजभाषाका निगम बनाया है, वह खुद अपना काम कर रहा है, हिन्दी को बढ़ावा दे रहा है। समाज को एक दिशा दे रहा है। फिर भी उसे आजतक एक अच्छी दिशा नही मिल पा रही, इस लिए वह भी पखवाडा, मनाके संतोष मानते है। सबसे तेज हिन्दी भाषाका अगर उपयोग हो रहा है, तो वह है मिडिया और पत्रिकाए और ललीत साहित्यमे वह अपना डेरा बरसो से जमाए है। बाकी तो कई अंग्रेजी चेनल और पत्रिकाए आइ और बंध हो गई। इससे अंदाजा लगा सकते है कि आम आदमी हिन्दी जानना चाहता है। मगर जब तक राजकरण इसमें है, राजभाषाको लींक भाषाका दर्जा नहीं मिलेगा। वह हमेशा आज की तरह सेकेन्ड भाषा ही मानी जायेंगी। क्योंकी अंग्रेजी इन्टरनेशनल भाषा है, वह हम पर हावी है। हम जानते है,की हमारे देशकी तरक्की में उसका योगदान कूच्छ तो है। ५८ सालसे राजनिती चलरही है। ढेरों पैसे खर्च किए क्या हुआ? हिन्दी गर्वसे बोली जानी चाहीए थी। आज तक पखवाडे मनाये जा रहे हैं!

आझादी के बाद १९६३से अपनीगतीसे हिन्दी चली आ रही है। हिन्दीको बढ़ावा देने के लिए १९३० से हि सोचना था, ठीक आज फिर भी देरी नहीं हुई है। जब जगे तबसे सवेरा, भारत ग्लोबल बन रहा है। उसमे अंग्रेजी नही हिन्दी का हि बडा योगदान है। क्योंकी कारोबारका हर आम मजदूर अंग्रेजी से बेहतर हिन्दी में समझता है। बोलता है ! आझादी के बाद सभी राज्य अलग हूवें, भाषावाद से वह भी हमारी भूल थी। आज हम कुछ भी करें, हिन्दी में करें। पखवडा मनानेके बजाय कुछ और करें। प्रांतका काम प्रांतकी भाषामें हो मगर हिन्दीको एक कानून बनाकर सेवा योजनासे जोडना चाहीए, हर सरकारी काम हिन्दीमें हि होना चाहीए। ऐसे पत्रव्यवहारसे काभी सुधार होगा। हमारे मे कमी है, हिन्दी भाषा के गर्व की। हम हिंदू है, फिर भी हिन्दी भाषा बोलने मे जादा शरमाते है। आप देखिये जर्मन अगर जर्मनमें बात करता है, वह गर्व महसूस करता है। लेकीन हम हिन्दीमें बांते करनेसे शरमाते है। यहां तक की अगर कोई विदेशी हमसे हिन्दीमें कुछ पता पुछता है तो, हम उसे अंग्रेजी में पता बतातें है। हिन्दी बोलेनेकी शरूआत वीवीआइपीयोंसे होनी चाहीए। जादासे जादा २२ घंटे हिन्दीके शब्दोकां इस्तमाल करें। फिर वह नेता या अभिनेता हो, या कोई बडा टाटा, बिरला या अंबानी परिवार। भारतमें बनी सभी प्रोडकमें हिन्दीभाषाका ही उपयोग करें। हमे अपनी सोच बदलनी होगी, हम जानते है, बड़ा वही है जो अंग्रेजी जानता हो, मगर नहीं, अब हमे गर्वसे कहना होगा यदी आपको हिन्दी आती है, तो आप बड़े हो। मिडीया को देखकर कहता हूं हिन्दी कारोबारकी भाषा बनी है, मगर कामकाजकी भाषा नहीं बन पा रही है। आज हमारा पडोशी देश जादासे जादा उर्दु बोलनेपर मोहर लगाता है! क्यो? हम अपने धर्मसे परे जा रहे हैं। भारतदेशमें आज भी आंतकवादका दौर शुरू है।दुसरे देश अपनी उन्नतीसे जलते है! पडोशी आझादी से पहले जिस भाषाने हमे एक रखा। जिस भाषाने हमे आझादी दी। उस पवित्र हिन्दी भाषाके लीए आज झगडे क्यो? कहां खो गई है, अपनी राष्ट्रभाषा ? भविष्य का भारतराष्ट्र और अपनी प्यारी हिन्दी राष्ट्रभाषा कैसी होगी? राष्ट्रीय एकता, अखंडता तथा सांस्कृतिक अस्मिता की संवाहिका हिन्दीको बढावा देने हेतु टीवी,फिल्म जगतके लेखक, दिग्दर्शक प्रकाश भावसारने राजभाषा हिन्दीपर टेली फिल्मकी तैयारी सुरू की है, जिसमे उन्होंने आज जो हो रहा हैऔर क्या होगा उसीका वर्णन किया है। हम धर्मवाद, प्रांतवाद, भाषावाद और आतंकवाद के झगडे में पडे है, और दुश्मन अपना काम आसानीसे कीये जा रहा है। उसीका निराकरण इस फिल्ममे है।

 
 
 

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